कभी कभी हिन्दी के शब्द ही अपना अर्थ उल्टा करने पर बता जाते है,जैसे लाभ की आशा करनी है तो दूसरों का भला चालू कर दो,क्योकि लाभ का ही उल्टा भला होता है,इसी तरह से दया सब को चाहिये मगर दया के लिये याद करना भी पडता है,सांई प्रभू को याद करने बाद देखिये कितनी जल्दी वे दया करने के लिये आजाते है,दिमाग कभी कभी बहुत ही गल्ती कर जाता है,और जब गल्ती होती है तो उस गल्ती का परिणाम कभी जल्दी और कभी देर मे भुगतना तो पडता ही है,बिजली की आफ़िस गया था,और आफ़िस का काम होते ही सोचा कि पास मे ही दूसरी कालोनी है,और उस कालोनी मे काम के लिये जाना था,बीच मे नाला जिसकी लम्बाई लगभग पांच सौ मीटर थी,और नाले के ऊपर रेलवे लाइन थी बीच मे और आस पास कोई गाडी आजाने पर बचने का कोई रास्ता नही था,नाले की गहराई भी लगभग सौ मीटर थी,स्लीपरों के बीच मे लोहे की शीट डाल दी गई थी कि कोई रेलवे का ही कर्मचारी सिगनल आदि लगाने के लिये नाले को पार कर सके,मैने अपनी मोपेड लेकर सोचा जल्दी से पार कर जाऊंगा,मोपेड को लेकर उन्ही लोहे के पतरों पर चल दिया,बीच मे पहुंचा तो देखा सामने से लुहारू-जयपुर गाडी चली आ रही है,सोच लिया साईं आज तो अन्तिम दिन है,और अन्तिम समय भी,लेकिन पता नही किसने शक्ति दी कि मै गाडी आने बाली दिशा मे ही मोपेड को लेकर दौडने लगा,और एक दम मोपेड को पलट कर जैसे ही सीधा हुआ,धड धड कर गाडी निकल गई,अचानक यह सब क्या हुआ,मेरी समझ मे नही आया,मुझे तो केवल इतना ही याद है कि मैने कहा साईं आज तो अन्तिम दिन है और अन्तिम समय,और यह सब हो गया,मैने पीछे घूम कर देखा,बापस जहां पर था,जा कर देखा,जितने समय के मै पहुंचा था,उससे दस हिस्से कम समय मे ही नाले के पार पहुन्च गया,फिर जिन्दगी लेकर चल दिया,मेरी तो नही थी,सांई ने दी है तो सांई की है,इसी प्रकार से पडौसी की पानी की मोटर नही चल रही थी,उनके बच्चे पानी के लिये परेशान थे,सोचा देखू यह मोटर पानी क्यों नही उठा रही है,टुल्लू मोटर थी,बिजली के तार लगाकर पानी की बाल्टी मे मोटर को डाल कर चालू कर दिया,पानी उछला और मोटर के ऊपर से मुझे भी भिगो दिया,मोटर मे करेन्ट आ गया,और मै चिपक गया,बाबा का चेहरा फिर सामने था,दूसरे लोग तो मुझे देख रहे थे,कोई तार को प्लग से नही हटा रहा था,अचानक मैं एक तरफ़ लुढकने लगा,और तार टूट गया,बाबा को देखा,ऐसा रूप कि जैसे बहुत ही गुस्से से हों,और कह रहे हों कि बहुत बेब्कूफ़ हो,जब देखो तब मौत को गले लगा लेते हो.