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Author Topic: गुरु की महत्ता  (Read 2188 times)

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Offline Apoorva

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गुरु की महत्ता
« on: December 10, 2007, 03:38:59 PM »
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  • सदगुरु की तुलना तो सब कामनाओ को पूर्ण करने वाली इच्छामणि से भी नही करी जा सकती, क्योंकि उस मणि से प्राप्त करने के लिये हमको पहले इच्छा करनी होती है | परन्तु सदगुरु अपने शिष्य की इच्छाओ के जन्म लेने से पहले ही उनको पूर्ण कर देते | यहाँ कोई यह प्रश्न उठा सकता है कि जब इच्छा हुई ही नही तो उसे पूर्ण कैसे किया जा सकता है | इस प्रश्न कि विवेचना के लिये हमको थोड़ा गहरे से चिंतन करना होगा |
    वस्तुत: यदि देखा जाये तो इस संसार में समस्त प्राणी चेतनाओ के विभिन्न स्तर है,  जिसका हम लोग अपने सामान्य ज्ञान के आधार पर वर्गीकरण कर लेते है | जैसे यह कहना कि, अमुक जानवर अमुक जानवर से ज्यादा समझदार होता है या,  मनुष्य जानवरों की अपेक्षा अधिक समझदार है,  अमुक मनुष्य अमुक मनुष्य से ज्यादा ज्ञानी है |
    हर चेतना के स्तर पर होने वाली घटनाये, परिस्तिथिया और उनका उस चेतना के प्राणी पर प्रभाव व उस प्राणी की प्रतिक्रिया, यह सभी आपस में मजबूती से सम्बद्ध है | प्राणी अपनी शुरुआत चेतना के किसी एक स्तर से करता है और आपने कर्मो के अनुसार अपने चेतना स्तर को उठता या गिराता है | यदि वह लगातार आपनी चेतना के स्तर को उठता चला जाये तो वह चेतना के उच्चतम शिखर पर पहुँच जाता, वह शिखर ही परमात्मा है, ब्रह्म है |
    सदगुरु अपनी चेतना के उच्चतम शिखर पर पहुँचे हुये होते है, इसलिये गुरु और गोविन्द में कोई भेद नही है | यदि यह दोनों एक ही है तो फ़िर कबीर ने गुरु को ईश्वर से भी उच्च दर्जा कैसे दिया ......
    "गुरु गोविन्द दोनों खडे, काके लागूं पायं |"
    "बलिहारी गुरु आपणे गोविन्द दियो मिलाय ||"
    आयु बढ़ने के साथ साथ संसार में हमारी समझ और अनुभव बढता है | चूँकि सदगुरु चेतना के उच्चतम स्तर है, इसलिये उनको चेतना के प्रत्येक स्तर का सम्पूर्ण ज्ञान होता है और इसी कारण से वे हमारी तात्कालिक ही नही बल्कि भविष्य की भी चेतना और उसमें होने वाली परिस्तिथिया जानते है |
    यह सदगुरु की करुणा ही है की वह हम सब प्राणियो का मार्गदर्शन करते है, हर प्राणी को उसकी तात्कालिक चेतना के अनुसार, उच्च चेतना के मार्ग पर आगे बढाते है, और हमारी चेतानाओ के कारण उत्पन्न होने वाली स्तिथियो में हमारी रक्षा करते है | कबीर के ही शब्दों में ....
    सदगुरू की महिमा अनंत, अनंत कियो उपकार |               
    अनंत लोचन उघडिया,  अनंत दिखावनहार ||     
    ॐ साई राम

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    « Last Edit: December 10, 2007, 04:13:02 PM by Ravi »
    गुरुर्ब्रम्हा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वराः |
    गुरुः साक्षात्परब्रम्ह तस्मै श्रीगुरवे नमः ||

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    • साई राम اوم ساي رام ਓਮ ਸਾਈ ਰਾਮ OM SAI RAM
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    Re: गुरु की महत्ता
    « Reply #1 on: December 10, 2007, 04:02:54 PM »
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    Sai Ram

    Offline tana

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      • Sai Baba
    Re: गुरु की महत्ता
    « Reply #2 on: December 11, 2007, 02:08:37 AM »
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  • ॐ सांई राम~~~

    गुरूदेव की बाँह थामी जब भरोसे साथ,
    यूँ लगा मुझे बैठा सामने मेरा सांई...मेरे सारे जग का नाथ....


    गुरु की आवश्यकता ~~~

    इस विषय में बाबा ने क्या उद्गगार प्रकट किये, इस पर हेमाडपंत दृारा लिखित कोई लेख या स्मृतिपत्र प्राप्त नहीं है । परंतु काकासाहेब दीक्षित ने इस विषय पर उनके लेख प्रकाशित किये हैं । बाबा से भेंट करने के दूसरे दिन हेमाडपंत और काकासाहेब ने मसजिद में जाकर गृह लौटने की अनुमति माँगी । बाबा ने स्वीकृति दे दी ।

    किसी ने प्रश्न किया – बाबा, कहाँ जायें । उत्तर मिला – ऊपर जाओ । प्रश्न – मार्ग कैसा है ।

    बाबा – अनेक पंथ है । यहाँ से भी एक मार्ग है । परंतु यह मार्ग दुर्गम है तथा सिंह और भेड़िये भी मिलते है ।

    काकासाहेब – यदि पथ प्रदर्शक भी साथ हो तो ।

    बाबा – तब कोई कष्ट न होगा । मार्ग-प्रदर्शक तुम्हारी सिंह और भेड़िये और खन्दकों से रक्षा कर तुम्हें सीधे निर्दिष्ट स्थान पर पहुँचा देगा । परंतु उसके अभाव में जंगल में मार्ग भूलने या गड्रढे में गिर जाने की सम्भावना है । दाभोलकर भी उपर्युक्त प्रसंग के अवसर पर वहाँ उपस्थित थे । उन्होंने सोचा कि जो कुछ बाबा कह रहे है, वह गुरु की आवश्यकता क्यों है । इस प्रश्न का उत्तर है (साईलीला भाग 1, संख्या 5 व पृष्ठ 47 के अनुसार) । उन्होंने सदा के लिये मन में यह गाँठ बाँध ली कि अब कभी इस विषय पर वादविवाद नहीं करेंगे कि स्वतंत्र या परतंत्र व्यकति आध्यात्मिक विषयों के लिये कैसा सिदृ होगा । प्रत्युत इसके विपरीत यथार्थ में परमार्थ-लाभ केवल गुरु के उरदेश में किया गया है, जिसमें लिखा है कि राम और कृष्ण महान् अवतारी होते हुए भी आत्मानुभूति के लिये राम को अपने गुरु वसिष्ठ और कृष्ण को अपने गुरु सांदीपनि की शरण में जाना पड़ा था । इस मार्ग में उन्नति प्राप्त करने के लिये केवल श्रदृा और धैर्य-ये ही दो गुण सहायक हैं ।


    जय सांई राम~~~ 
    "लोका समस्ता सुखिनो भवन्तुः
    ॐ शन्तिः शन्तिः शन्तिः"

    " Loka Samasta Sukino Bhavantu
    Aum ShantiH ShantiH ShantiH"~~~

    May all the worlds be happy. May all the beings be happy.
    May none suffer from grief or sorrow. May peace be to all~~~

    Offline tana

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      • Sai Baba
    Re: गुरु की महत्ता
    « Reply #3 on: January 17, 2008, 12:54:11 AM »
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  • ॐ सांई राम~~~

    श्री साईबाबा ~~~एक संत सदगुरु~~~

    अधिक सफलतापूर्वक और सुलभ साक्षात्कार को प्राप्त करने का एकमात्र उपाय है-किसी योग्य संत या सदगुरु के चरणों की शीतल छाया में आश्रय लेना, जिसे कि ईश्वर-साक्षात्कार हो चुका हो । जो लाभ धार्मिक व्याख्यानों के श्रवण करने और धार्मिक ग्रन्थों के अध्ययन करने से प्राप्त नहीं हो सकता, वह इन उच्च आत्मज्ञानियों की संगति से सहज ही में प्राप्त हो जाता है । जो प्रकाश हमें सूर्य से प्राप्त होता है, वैसा विश्व के समस्त तारे भी मिल जायें तो भी नहीं दे सकते । इसी प्रकार जिस आध्यात्मिक ज्ञान की उपलब्धि हमें सदगुरु की कृपा से हो सकती है, वह ग्रन्थों और उपदेशों से किसी प्रकार संभव नहीं है । उनकी प्रत्येक गतिविधि, मृदु-भाषण, गुहा उपदेश, क्षमाशीलता, स्थरता, वैराग्य, दान और परोपकारिता, मानव शरीर का नियंत्रण, अहंकार-शून्यता आदि गुण, जिस प्रकार भी वे इस पवित्र मंगल-विभूति दृारा व्यवहार में आते है, सत्संग दृारा भक्त लोगों को उसके प्रत्यक्ष दर्शन होते है । इससे मस्तिष्क की जागृति होती तथा उतत्रोत्तर आध्यात्मिक उन्नति होती रहती है । श्री साईबाबा इसी प्रकार के एक संत या सदगुरु थे । यघपि वे बाहृरुप से एक फकीर का अभिनय करते थे, परन्तु वे सदैव आत्मलीन रहते थे । वे समस्त प्राणियों से प्रेम करते और उनमें भगवत्-दर्शन का अनुभव करते थे । सुखों का उनको कोई आकर्षण न था और न वे आपत्तियों से विचलित होते थे । उनके लिये अमीर और फकीर दोनों ही एक समान थे ।

    जय सांई राम~~~
    "लोका समस्ता सुखिनो भवन्तुः
    ॐ शन्तिः शन्तिः शन्तिः"

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