"अरे मैने उसे वचन दिया था तो क्या निभाया नही | उससे पूछो क्या वह तीन मूर्तियाँ ( बाबा और संग में २ और सन्यासी ) ठीक समय पर उसके यहाँ नही पहुची थी, यदि वही मुझे पहचान नही पाया तो मेरा क्या कसूर है | मेरे वचन कभी ग़लत नही होते, मैं अपने वचन को पूर्ण करने के लिये अपना सर्वस्र लुटा दूंगा |"
-- श्री साईं सद्चरित्र ( श्री देव के यहाँ उद्यापन में शामिल होने की कथा )
किसी मन्दिर की मूर्ति में नही हैं साईं, वह तो विश्वास में हैं | साईंनाथ ने ख़ुद ही कहा है, " जो मुझसे अत्यधिक प्रेम करता है वह समस्त प्राणियो में मेरा ही दर्शन पाता है" | साईं तो भक्तो के ही हैं, भक्त भले ही भगवान् को भूल जाये पर भगवान् कभी भी भक्तो को नही भूलते है | उन्हे तो हर पल हमारी फिक्र लगी रहती है, वे हर पल हमारी रक्षा और उन्नति ( अध्यात्मिक एव भौतिक ) करते रहते हैं |
साईं हमारी प्राणवायु हैं, जिस प्रकार प्राणवायु का कोई आकार नही होता, कोई रूप कोई, रंग नही होता है, उसको हम सिर्फ़ महसूस करते है ठीक उसी प्रकार हमको साईं को महसूस करना होता है | यह उनका अद्भुत वैशिष्ट्य हैं कि वह स्वयं हम प्राणियों पर अपनी कृपा और दया की अमृत वर्षा कुछ इस प्रकार करते रहते हैं कि हम अपनी आखों पर पडे अज्ञान के पर्दे के वावजूद उनकी कृपा को मानने के लिये बाध्य हो जाते है | यह मानव स्वाभाव ही है कि जब तक हम किसी कष्ट, किसी परेशानी में नही आते हैं तब तक हमको ईश्वर की सुध आती ही नही है |
"दुःख में सुमिरन सब करें, सुख में करे न कोय |
जो सुख में सुमिरन करें तो दुःख कहे को होय ||"
परन्तु इसके साथ साथ यह भी सत्य है कि ऐसे समय में होने वाली ईश्वर की कृपा हमारे विश्वास में कई गुणा बढोत्तरी करती है | इसलिये ही कुछ भक्त तो इतने महान हैं कि वह ईश्वर से कहते हैं कि," ऐ मेरे मालिक, हमको और दुःख दो जिससे हर समय हम तुम्हारा ही नाम लेते रहे" | ऐसे भक्त वाकई बहुत उच्चकोटी के होते हैं, और वह उस सद्वस्तु जिसे हम परमात्मा, ब्रह्म, साईं कहते हैं, उसको हर क्षण महसूस करते हैं | पर हम जैसे साधारण भक्तों को किस उपाय का पालन करना चाहिये कि हमको भी हमारे साईं महसूस होते रहे | इसका भी न जाने कितने ही रास्ते साईंनाथ ने हमको देखा दिये हैं और उनमें से किसी भी एक मार्ग का अनुसरण निष्ठापूर्वक करने पर हर पल साईं की अनुभूति होती रहेगी | देव की कृपा से आप सभी भक्तों का ध्यान उनकी एक अति महत्वपूर्ण शिक्षा पर ले जाना चाहता हूँ |
"हमेशा भूखो को भोजन कराओ और कभी अन्न का अपमान न करो"
ज़रा कभी किसी क्षुदा पीड़ित इंसान को भोजन दो और देखो ज़रा उसकी आखों में कैसी खुशी होती है, वह बोले या ना बोले, जरा पढो उसकी आखें हमको कितनी दुआये देती हैं, उसके उस पल के सुख, शांति और आनंद को महसूस करो, साईं महसूस होंगे | दिल बड़ा आनंदित सा होगा, आत्मविश्वास में, भक्ति में वृद्धि होगी और ईश्वर का सामीप्य महसूस होगा | जो पैसा हम बेकार के आद्म्बरो में, दिखावो में खर्च कर देते हैं यदि उसका 10 प्रतिशत भी भूखो को भोजन कराने में लगा दें तो ईश्वर हमसे अत्यधिक प्रसन्न होगा | फ़िर तो साईंनाथ की ऐसी कृपा होगी कि हर पल, उठते-बैठते, जागते-सोते सिर्फ़ उन्ही के दर्शन पायेंगे | हर प्राणी के अन्तःकरण में स्वयं साईं ही विराजमान हैं इसलिये हम किसी और को नही वस्तुतः आपने देव को ही भोजन करायेंगे | ज़रा इस आनंद की कल्पना तो करो, जिसकी एक झलक देखने को इतने लालायित रहते है, उसकी को ही अपने हाथो से भोजन करने को मिले |
हम में से बहुत से लोग कई बार अन्न का दुरपयोग करते है, कभी बिगाड़ना कभी फैक देना, यह उचित नही है | इस धरती पर न जाने कितनी ही लोग हैं जिनको २ समय का भोजन भी नही मिल पाता | आइये, हम सब संकल्प लें कि न तो स्वयं कभी अन्न का अपमान करेंगे और अन्य लोगो को भी ऐसा करने से रोकेंगे | हमारे द्वारा बरबाद किया ( फैकें ) जाने वाला भोजन किसी का पेट भर सकता है |
ॐ साईं राम