जय सांई राम।।।
बिना जात के
काफी पहले की बात है रेल के एक डिब्बे में कुछ लोग सफर कर रहे थे। कम्पार्टमेन्ट प्रथम श्रेणी का था, इसलिए भीड़भाड़ भी अधिक नहीं थी। एक सज्जन किताब पढ़ने में व्यस्त थे, जबकि बाकी सभी बातों में मशगूल थे। वे सभी पढ़े-लिखे और उच्च परिवारों के लग रहे थे। उनकी चर्चा का विषय था जातिवाद। बातों-बातों में वे अपनी-अपनी जाति की बढ़ाई का बखान भी करते जा रहे थे तभी उनमें से एक व्यक्ति ने पुस्तक पढ़ने वाले सज्जन से पूछा- श्रीमान, आप किस कास्ट से हैं? प्रश्न सुनकर वे सज्जन चुप रहे और पुस्तक पढ़ने में तल्लीन रहे। उन्हें चुप देखकर उस व्यक्ति ने फिर कहा- श्रीमान, आपने बताया नहीं कि आप किस कास्ट से हैं?
तब उस सज्जन ने जवाब दिया- मैं किसी एक कास्ट का होता तो जवाब देता। मेरी तो कोई एक कास्ट है ही नहीं।
इस अटपटे जवाब पर हैरान होकर सभी व्यक्ति प्रश्नसूचक दृष्टि से सज्जन को देखने लगे। सज्जन बोले- जब मैं सवेरे नित्यकर्म के लिए जाता हूं तो शूद बन जाता हूं। जब जीवन जीने के लिए संघर्ष करता हूं तो क्षत्रिय हो जाता हूं। जब कॉलेज में बच्चों को पढ़ाता हूं तो ब्राह्माण बन जाता हूं और जब अपने वेतन तथा खर्च आदि का हिसाब-किताब करता हूं तो वैश्य हो जाता हूं। इसलिए मुझे खुद समझ नहीं आता कि मैं किस कास्ट से हूं। अगर आप समझ सकते हों तो खुद ही जान लीजिए कि मेरी कास्ट क्या है।
यह जवाब सुनकर सभी लोग शर्मिंदा से हो गए। आगे चलकर यही सज्जन आचार्य कृपलानी के नाम से विख्यात हुए।
ॐ सांई राम।।।