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Author Topic: ~~~~* साईं बाबा की शिक्षा * ~~~~  (Read 1204 times)

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Offline rahul jain

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1>.  साईं बाबा कहते हैं ," मैं अपने भक्तों की पीडा को दूर करता हूँ ताकि वो किससी भी मोह माया में ना  उलझते हुए हमेशा मालिक की भक्ति करता रहे | मैं (साईबाबा) तो मालिक का बन्दा हूँ |  मैं यहाँ सबको करुना देने आया हूँ , सबका मार्ग दर्शन करने आया हूँ  | दुश्मनों को मित्र बनाने आया हूँ | एक दुसरे से इर्षा किये बिना , एक दुसरे का साथ देते हुए ज़िन्दगी  जीने  की शिक्षा देने आया हूँ | मालिक तो हर प्राणी में समाया है , यह जान कर हर किससी का सम्मान करो , किससी से भी नफरत न करो यह समझाने आया हूँ मैं | इंसानियत सबसे बड़ा धरम है यह मैं बार-बार कहते आया हूँ , क्यूंकि हम सबका मालिक वही एक है | जो मेरा स्मरण करता है उसकी हमेशा मुझे याद रहती है  | और जब मेरा भक्त मुझे पुकारता है तो मैं उनकी सहायता के लिए तुंरत पहुँचता हूँ |

2>. अंहकार जब मान में कुंडली मार कर बैठता है तब इंसान गलत बातें सोचने लगता है , साजिशें करने लगता है और तब स्वार्थ , इर्षा , नफरत जैसे इंसान के शत्रु भी जाग जातें हैं | इंसान तभ ठीक तरह से सोच नहीं सकता  |  उसके मन में यह भावना  पैदा हो जाती है की वो जो भी कर रहा है वही ठीक है और वो अपने परिवार का भला नहीं बुरा ही करता है | वो दूसरो की भावना की कद्र भी नहीं करता , किससी को महत्त्व  नहीं देता | स्वार्थ इंसान को अँधा और बहरा बना देता है , स्वार्थ के कारन ही वो अपनों के साथ अन्याय करता है और उस से परिवार में दरार पैदा होती है , रिश्तों में कड़वाहट पलने लगती है | इंसान भूल जाता है  की पैसा घर के संस्कार बरक़रार नहीं रख सकता , उसके लिए घर में संस्कारी और गुनी बहु का आना जरुरी है , महत्त्व बहु को देना चाहिए उसके साथ आने वाले पैसे को नहीं |


JAI SAI RAM
« Last Edit: October 06, 2009, 01:12:58 AM by rahul jain »

 


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