जय सांई राम
मुक्ति की चाह
एक ऋषि पहाड़ पर घोर तप में लीन थे। तपस्या करते हुए वे सूखकर कांटा हो गए थे। संयोग से एक दिन वहां नारद मुनि आ पहुंचे। ऋषि उन्हें देखकर बड़े प्रसन्न हुए। ऋषि ने उन्हें अपनी साधना के बारे में बताया और पूछा, 'आप तो हर जगह जाते रहते हैं। कभी वैकुंठ जाएं तो जरा देखिएगा, वहां की सूची में मेरा नाम है या नहीं।' नारद चले गए। कुछ दिनों बाद लौटकर आए तो उन्होंने ऋषि को बताया कि वैकुंठ की सूची में उनका नाम नहीं है। इस पर ऋषि क्रोधित हो गए। उन्होंने कहा, 'मैंने इतनी कठोर तपस्या की है फिर भी अभी तक मेरा नाम नहीं आया। जरूर वहां कोई गलती हुई है।' इस पर नारद ने कहा, 'ऋषिवर, मुझे तो लगता है कि कमी आप में ही है।' इससे ऋषि दुखी हो गए। उन्होंने फिर घोर तपस्या शुरू कर दी। वे अपने दुर्गुणों को दूर करने में भी लग गए। कुछदिनों बाद फिर नारद जी आए। एक बार पुन: ऋषि ने वही प्रश्न किया। इस पर नारद ने यही दोहराया कि उनका नाम अभी तक उस सूची में नहीं आया है। ऋषि के लिए यह बड़ा आघात था। अब वह अपने आप से पूरी तरह उदासीन हो गए। उन्होंने तय कर लिया कि अब उन्हें मुक्ति नहीं चाहिए। कुछ दिनों बाद नारद जी प्रकट हुए और बोले, 'मैं वैकुंठ जा रहा हूं। कोई काम हो तो बताइए।'
इस पर ऋषि ने जवाब दिया, 'अब वैकुंठ से क्या लेना-देना, वहां जाने की कोई चाह भी नहीं रही। अब मैं अपने आप से तटस्थ हो गया हूं। मुझे मुक्ति नहीं चाहिए। मेरा वैकुंठ यहीं मौजूद है।'
नारद ने कहा, 'अब आपकी साधना सफल हुई। वास्तव में मुक्ति की प्रबल इच्छा भी बंधन है। अब आप इससे भी ऊपर उठ गए। आपसे ज्यादा वैकुंठ जाने का अधिकारी और कौन होगा।' लौटकर नारद ने ऋषि को बताया कि उनका नाम वैकुंठ की सूची में सबसे ऊपर है।
ॐ सांई राम।।।