Join Sai Baba Announcement List


DOWNLOAD SAMARPAN - Nov 2018





Author Topic: महाभारत - पाण्डवों का वन गमन  (Read 2740 times)

0 Members and 1 Guest are viewing this topic.

Offline JR

  • Member
  • Posts: 4611
  • Blessings 35
  • सांई की मीरा
    • Sai Baba
इसके पश्चात् धृतराष्ट्र ने दुर्योधन से पाण्डवों का राज्य लौटाने के लिये कहा। इस पर दुर्योधन ने कहा कि राज्य हमने जुए में जीता है अतः युधिष्ठिर को वह केवल जुए का दाँव जीत कर ही वापस मिल पायेगा। युधिष्ठिर यदि चाहे तो एक दाँव और खेल सकता है। इस बार जीतने पर उसे राज्य सहित हारा हुआ समस्त धन-सम्पत्ति लौटा दिया जायेगा। किन्तु हारने पर पाण्डवों को बारह वर्ष का वनवास और एक वर्ष का अज्ञातवास भोगना होगा। अज्ञातवास के समय यदि उनका पता चल जाता है तो उन्हें फिर से बारह वर्ष का वनवास और एक वर्ष का अज्ञातवास भोगना होगा। और यदि पाण्डव बारह वर्ष का वनवास और एक वर्ष का अज्ञातवास सफलतापूर्वक व्यतीत कर वापस आ जायेंगे तो उन्हें उनका राज्य वापस लौटा दिया जायेगा।" यद्यपि भीष्म, द्रोण, कृपाचार्य आदि ने दुर्योधन के इस बात का घोर विरोध किया, किन्तु दैवयोग को कौन टाल सकता है? युधिष्ठिर ने इस दाँव के लिये अपनी स्वीकृति दे दी। शकुनि ने पुनः कपट भरे पासे डाल-डाल कर युधिष्ठिर को हरा दिया।

इस प्रकार हार जाने के पश्चात् युधिष्ठिर अपने भाइयों और पत्नी समेत वल्कल धारण कर वन जाने के लिये तैयार हो गये। इसी समय दुःशासन ने द्रौपदी से कहा, "सुन्दरी! तुम वन के योग्य नहीं हो। तुम हमारे साथ आ जाओ और महलों का सुख उठाओ। पाण्डव नपुंसक हो गये हैं, आज उनके सारे राज्य पर हमारा अधिकार हो चुका है, अब उनका साथ छोड़ देने में ही तुम्हारी भलाई है।" यह सुनते ही भीम अत्यन्त क्रोधित होकर बोले, "दुष्ट पापी! तुमने यह राज्य छल-कपट से प्राप्त किया है, युद्ध से नहीं। वनवास से लौटने के बाद मैं तुम्हारा खून पीकर अपनी प्यास बुझाउँगा।" अर्जुन ने भी कहा, "मैं भी शपथ ले कर कहता हूँ कि युद्ध क्षेत्र में कर्ण का वध अवश्य करूँगा।" सहदेव बोले, "मैं गान्धार के कलंक दुष्ट शकुनि को युद्ध क्षेत्र में मार गिराउँगा।"

इस प्रकार पाण्डवों ने बहुत सी प्रतिज्ञायें कीं और फिर सभी गुरुजनों से भेंट कर वन जाने लगे। उनके वन के लिये प्रस्थान करते समय विदुर ने समझाया, "पुत्रों! तुम्हारी माता अब बहुत वृद्ध हो गई हैं, वन के कष्टों को झेलना उनके लिया असाध्य है। अतएव तुम उन्हें मेरे पास छोड़ दो।" पाण्डवों ने अपने दादा विदुर की इस बात को मान लिया और अपने माता कुन्ती को वहीं छोड़ कर वन को प्रस्थान कर गये।

पाण्डवों के वन चले जाने के पश्चात् विदुर धृतराष्ट्र के पास आकर बोले, "धृतराष्ट्र! जो कुछ भी हुआ है वह केवल आपकी कुबुद्धि का परिणाम है। इसका फल चौदह वर्षों के बाद आपको प्रत्यक्ष देखने को मिलेगा। पाण्डवों के वन जाते समय सारी प्रजा आपको और आपके पुत्रों को कटु वचन कह रही थी। विनाशकाल आने पर बुद्धि विपरीत हो जाती है। आपकी भी बुद्धि विपरीत हो गई है। आपको इस द्यूत-क्रीड़ा के आयोजन को रोकना था किन्तु आपने उसे नहीं रोका। आपके पुत्रों ने पाण्डवों के राज्य को छलपूर्वक हड़प लिया और आपने इस कार्य में अपने पुत्रों का साथ दिया है। निश्चय ही आपको अपने पापों का फल भोगना होगा।"

सबका मालिक एक - Sabka Malik Ek

Sai Baba | प्यारे से सांई बाबा कि सुन्दर सी वेबसाईट : http://www.shirdi-sai-baba.com
Spiritual India | आध्य़ात्मिक भारत : http://www.spiritualindia.org
Send Sai Baba eCard and Photos: http://gallery.spiritualindia.org
Listen Sai Baba Bhajan: http://gallery.spiritualindia.org/audio/
Spirituality: http://www.spiritualindia.org/wiki

 


Facebook Comments