प्रातःकाल स्नान, स्नध्यावन्दनादि कार्यों से निवृत होकर दोनों भाई राम और लक्ष्मण गुरु विशवामित्र के साथ नदी तट पर पहुँचे। विश्वामित्र के साथ दो सुकुमार बालकों को देख कर तथा उनका परिचय पाकर एक वनवासी मुनि छोटी सी सुन्दर नौका ले आये और विश्वामित्र से बोले, "हे मुनिराज! आप इन राजकुमारों के साथ इस नौका पर बैठ कर सरिता के उस पार चले जाइये।" विश्वामित्र जी ने उस मुनि को धन्यवाद दिया और राम तथा लक्ष्मण के साथ नौका पर सवार होकर, समुद्र से मिलने के लिये आतुर दौड़ती जा रही कल कल करती, उस नदी को पार कर गये। नदी के उस पार एक भयंकर वन था। उस वन को देखकर राम बोले, "गुरुदेव! यह वन तो बड़ा भयानक है। चारों ओर से सिंह, व्याघ्र आदि हिंसक पशुओं के दहाड़ने और हाथियों के चिंघाड़ने की आवाजें आ रही हैं। जंगली सूअर, भालू, वनभैंसें आदि पशु भ्रमण करते दृष्टिगत हो रहे हैं। घने वृक्षों के कारण सूर्य का प्रकाश इस वन के भीतर घुसने का साहस नहीं कर पा रहा है तथा इसके कारण चारों ओर अन्धकार हो रहा है। इस अति दुर्गम वन का क्या नाम है।"
राम के इस प्रश्न का उत्तर विश्वामित्र ने इस प्रकार दिया, "हे राघव! कभी यहाँ पर इस भयंकर वन के स्थान पर मलदा और करुप नामक दो बड़े समृद्ध राज्य हुआ करते थे। ऊँची ऊँची अट्टालिकाओं, वीथिकाओं तथा सुन्दर पथों से से सुशोभित उन दोनों ही राज्यों में धन धान्य और समृद्धि का बाहुल्य था दूर दूर के व्यापारी यहाँ पर व्यापार करने आया करते थे। किन्तु ताड़का नाम के एक यक्ष कन्या ने उन राज्यों का विनाश कर दिया। ताड़का कोई साधारण स्त्री नहीं है। वह सुन्द नाम के राक्षस की पत्नी और मारीच नामक राक्षस की माता है। वह बहुत पराक्रमी और बलवान है, हजार हाथियों के बराबर बल है उसके शरीर में। इस प्रदेश को नष्ट करने के पश्चात् ताड़का ने अपने पुत्र मारीच के साथ मिलकर यहाँ के समस्त निवासियों को मार कर खा डाला। अब उनके भय से यहाँ दो दो कोस दूर तक किसी मनुष्य की परछाईं भी दृष्टिगत नहीं होती। यदि भूल से कोई यहाँ आ भी जाय तो जीवित नहीं लौट पाता। उस ताड़का का संहार करने के लिये ही मैं तुम्हें यहाँ लाया हूँ।"
राम ने आश्चर्य से पूछा, "गुरुदेव! ताड़का में हजार हाथियों का बल कैसे आ गया? अवश्य कुछ न कुछ रहस्य है नहीं तो स्त्रियाँ तो कोमल और दुर्बल होती हैं।" विश्वामित्र बोले, "वत्स! तुम्हारा कथन सत्य है और वास्तव में इसके पीछे एक रहस्य है। एक समय सुकेतु नाम का एक अत्यंत बलवान यक्ष था। उसकी कोई भी सन्तान नहीं थी। अतः सन्तान प्राप्ति के उद्देश्य से उसने ब्रह्मा जी की कठोर तपस्या की। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उसे सन्तान होने का वरदान दे दिया और उस वर के परिणामस्वरूप ताड़का का जन्म हुआ। सुकेतु ने ब्रह्मा जी से ताड़का के अत्यंत बली होने का वर भी ले लिया और ब्रह्मा जी ने उसके शरीर में हजार हाथियों का बल दे दिया। विवाह योग्य आयु होने पर सुकेतु ने ताड़का का विवाह सुन्द नाम के राक्षस से कर दिया और उससे मारीच का जन्म हुआ। मारीच भी अपनी माता के समान बलवान और पराक्रमी हुआ वह सुन्द राक्षस का पुत्र होकर भी स्वयं राक्षस नहीं था परन्तु बचपन में वह बहुत उपद्रवी था। ऋषि मुनियों को अकारण कष्ट दिया करता था। उसके उपद्रवों से दुखी होकर एक दिन अगस्त्य मुनि ने उसे राक्षस हो जाने का शाप दे दिया। अपने पुत्र के राक्षस गति प्राप्त हो जाने से सुन्द अत्यन्त क्रोधित हो गया और अगस्त्य ऋषि को मारने दौड़ा। इस पर अगस्त्य ऋषि ने शाप देकर सुन्द को तत्काल भस्म कर दिया। अपने पति की मृत्यु का बदला लेने के लिये ताड़का अगस्त्य ऋषि पर झपटी। परिणामस्वरूप ऋषि अगस्त्य ने शाप दे कर ताड़का की सुन्दरता को नष्ट कर दिया और वह अत्यंत कुरूप हो गई। अपनी कुरूपता को देखकर और अपने पति की मृत्यु का बदला लेने के लिये ताड़का ने अगस्त्य मुनि के आश्रम को नष्ट करने का संकल्प किया है। अतः हे राम! मैं तुम्हें आज्ञा देता हूँ कि तुम ताड़का का वध करो। तुम्हारे अतिरिक्त इसका कोई भी वध नहीं कर सकता। अपने मन से यह विचार निकाल दो कि यह स्त्री है और स्त्री का वध मैं कैसे करूँ। स्त्री के रूप में यह एक घोर पाप है और पाप को नष्ट करने में कोई पाप नहीं होता। समस्त संशय को त्याग कर मेरी आज्ञा से तुम इस पापिनी का संहार कर दो।"
राम ने कहा, "गुरुदेव! आपकी आज्ञा मुझे शिरोधार्य है। मनुष्यों के कल्याण के लिये मैं अवश्य ताड़का का वध करूँगा।" इतना कह कर राम ने अपने धनुष पर बाण रख कर उसकी प्रत्यंचा को कान तक खींच कर भयंकर टंकार की ध्वनि उत्पन्न किया। उस ध्वनि से समस्त वन प्रान्त गुंजायमान हो उठा और वन्य पशु भयभीत होकर इधर उधर भागने लगे। इस प्रकार की अप्रत्याशित खलबली मची देखकर ताड़का क्रोध से भर उठी। धनुष ताने राम के दृष्टिगत होते ही इस विचार से कि कोई अपरिचित कुमार उसके साम्राज्य पर आधिपत्य करना चाहता है वह क्रोध से पागल हो गई। राम पर आक्रमण करने के लिये वह तीव्र गति से उन पर झपटी। ताड़का को अपनी ओर आते देख कर राम ने लक्ष्मण से कहा, "देखो भाई! ताड़ के वृक्ष जैसी विशाल और विकराल मुख वाली इस राक्षसी का शरीर कितना कुरूप है। इसकी मुख मुद्रा देख कर ही प्रतीत होता है कि यह बड़ी हिंसक है और निरीह प्राणियों की हत्या करके उनका रक्तपान करने में इसे बहुत आनन्द आता होगा। तुम एक तरफ सावधान होकर खड़े हो जाओ और देखो कि कैसे इसे मैं अभी यमलोक भेजता हूँ।"
विकराल देहधारिणी ताड़का अपने बड़े बड़े दाँत चमकाती, भुजाओं को फैलाये हुये द्रुतगामी बिजली की तरह राम और लक्ष्मण पर टूट पड़ी। राम इस भयंकर आक्रमण के लिये पहले से ही तैयार थे, उन्होंने तीक्ष्ण बाण चला कर उसके हृदय को छलनी कर दिया। उसके वक्षस्थल से गर्म गर्म रक्त की धारा प्रवाहित हो उठी। जब तक वह आक्रमण करने के लिये पुनः झपटती राम ने एक और बाण चला दिया जो सीधे उसके वक्ष में जाकर लगा। वह पीड़ा से चीखती हुई चक्कर खाकर भूमि पर गिर पड़ी और अगले ही क्षण उसके प्राण पखेरू उड़ गये। राम के इस रण कौशल और ताड़का की मृत्यु से ऋषि विश्वामित्र अत्यंत प्रसन्न हुये। उनके हृदय से रामचन्द्र के लिये आशीर्वचन निकलने लगे।
गुरु की आज्ञा से वहीं पर सभी ने रात्रि विश्राम किया। प्रातःकाल उन्होंने देखा कि ताड़का के आतंक से मुक्ति पा जाने के कारण उस वन की भयंकरता और विकरालता समाप्त हो चुकी है। कुछ काल तक उसकी शोभा निहारने के पश्चात् स्नान पूजन से निवृत हो कर वे महर्षि विश्वामित्र के आश्रम की ओर चल पड़े।