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Author Topic: रामायण – अरण्यकाण्ड - खर-दूषण से युद्ध  (Read 1733 times)

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Offline JR

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अपनी बहन शूर्णखा को उठा कर जब खर ने उसका रक्त-रंजित मुखमण्डल देखा तो वह क्रोध से काँपते हुये बोला, "बहन! यह क्या हुआ? किस दुष्ट ने तेरे नाक-कान काटने का दुःसाहस किया? किसने आज इस सोते हुये नागराज को छेड़ने की मूर्खता की है? किसके सिर पर काल नाच रहा है? तू शीघ्र उसका नाम बता और सारा वृतान्त विस्तारपूर्वक कह, मैं अभी उस दुष्ट को इस पृथ्वी से समाप्त कर दूँगा।"

खर के इन वचनों सुन कर शूर्पणखा का कुछ धैर्य बँधा और वह रोते-रोते खर को बताने लगी, "अयोध्या के राजा दशरथ के दो पुत्र राम और लक्ष्मण इस वन में आये हुये हैं। साथ में राम की भार्या सीता भी है। वे दोनों भाई बड़े सुन्दर, पराक्रमी और तपस्वी मालूम होते हैं। जब मैंने उनसे उस स्त्री के विषय में पूछा तो वे चिढ़ गये। उनमें से एक ने मेरे नाक-कान काट लिये। भैया! तुम शीघ्र उन्हें मार कर उनसे मेरे अपमान का बदला लो। जब तक मैं उन तीनों का गरम-गरम रुधिर न पी लूँगी, मुझे शान्ति नहीं मिल सकती। इतना सुनते ही खर ने अपनी सेना के चौदह सबसे भयंकर योद्धा एवं पराक्रमी राक्षसों को आदेश दिया कि शूर्पणखा के साथ जा कर उन तीनों का वध करो। मेरी बहन को वहीं उनके शरीर का गरम-गरम रक्त पिला कर इसके अपमान की ज्वाला को शान्त करो। खर की आज्ञा पाकर वे राक्षस भयंकर अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित होकर राम, लक्ष्मण तथा सीता को मारने के लिये शूर्पणखा के साथ चल पड़े।

जब राम ने शूर्पणखा को इस राक्षस दल के साथ आते देखा तो वे लक्ष्मण से बोले, "लक्ष्मण! ये राक्षस शूर्पणखा के अपमान का बदला लेने के लिये आ रहे हैं। तुम सीता की रक्षा करो। मैं अभी एक-एक को मार कर यमलोक भेजता हूँ।" इसके पश्चात् जब तक राक्षस उनके पास पहुँचें, राम धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ा कर बाण सँभाले युद्ध के लिये तैयार हो चुके थे। फिर उनसे बोले, "दुष्टों! हम लोग इस वन में निवास करते हुये तपस्वी धर्म का पालन कर रहे हैं और किसी निर्दोष को कभी नहीं छेड़ते। इसलिये तुम भी यदि अपनी भलाई चाहते हो तो यहाँ से लौट जाओ।" राम के वचन सुन कर बिना कोई उत्तर दिये ही उन राक्षसों ने एक साथ राम पर अपने शस्त्रों से आक्रमण कर दिया। इस पर राम ने एक साथ चौदह बाण छोड़े जिन्होंने उनकी छातियों में घुस कर उनके प्राणों का हरण कर लिया। वे भूमि पर गिर कर तड़पने लगे। फिर वे सब मृत्यु को प्राप्त हुये। सब राक्षसों को इस प्रकार मरा देख शूर्पणखा रोती-बिलखती खर के पास जाकर बोली, "उन सब राक्षसों को अकेले राम ने ही मार डाला। वे सब मिल कर भी उसका कुछ न बिगाड़ सके। मुझे तो ऐसा लगता है कि वे तुम्हारे सब योद्धाओं को पल भर में समाप्त कर देंगे। तुम अपनी सम्पूर्ण शक्ति लगा कर उससे युद्ध करो। यदि तुमने मेरे अपमान का प्रतिशोध नहीं लिया तो मैं आत्महत्या करके अपने प्राण त्याग दूँगी।"

शूर्पणखा के इन वचनों को सुन कर खर ने क्रोधित होकर कहा, "शूर्पणखे! तू अकारण ही भयभीत हो कर आत्महत्या करने का प्रलाप कर रही है। मैं तत्काल जाकर उन दोनों भाइयों का वध कर डालूँगा। उनका तेज मेरे सामने वैसा ही है जैसे कि सूर्य के सामने जुगनू। तू व्यर्थ की चिंता त्याग दे।" इस भाँति शूर्पणखा को सान्त्वना देकर खर चौदह सहस्त्र विकट योद्धाओं वाली अपनी विशाल सेना को साथ लेकर राम से संग्राम करने के लिये तीव्रता पूर्वक चला। खर को अपनी विशाल सेना के साथ आते देख कर राम ने लक्ष्मण से कहा, "लक्ष्मण! ऐसा प्रतीत होता है कि राक्षसराज अपने पूरे दल-बल के साथ चला आ रहा है। आज आर्य का अनार्य के साथ संघर्ष होगा और निःसन्देह आर्य की विजय होगी। तुम सीता की रक्षा के लिये उसे साथ ले कर शीघ्र ही किसी गुफा में चले जाओ ताकि मैं निश्चिंत होकर युद्ध कर सकूँ।"

लक्ष्मण ने तत्काल अपने अग्रज की आज्ञा पालन किया। वे सीता को ले कर पर्वत की एक अँधेरी कन्दरा में चले गये। अभेद्य कवच धारण कर के राम युद्ध के लिये तैयार हो गये। देवता, यक्ष, किन्नर, गन्धर्व आदि सभी राम के विजय के लिये परमात्मा से इस प्रकार प्रार्थना करने लगे, "हे त्रिलोकीनाथ! वीर पराक्रमी रामचन्द्र को इतनी शक्ति दे कि उनके हाथों गौ, ब्राह्मणों तथा ऋषि-मुनियों को अनेक प्रकार से कष्ट देने वाले राक्षसों का नाश हो सके।" राक्षसों की सेना ने राम को चारों ओर से घेर लिया तथा आक्रमण की तैयारी करने लगे। राम ने भीषण विनाश करने वाली अग्नि बाण छोड़ दिया जिससे राक्षस हाहाकार करने लगे। राक्षसों के द्वारा छोड़े गये बाणों को वे अपने बाणों से आकाश में ही काटने लगे। राक्षसों ने अत्यन्त क्रोधित होकर एक साथ बाणों की वर्षा करना आरम्भ कर दिया और राम चारों ओर से उनके बाणों से आच्छादित हो गये। राम ने अपने धनुष को मण्डलाकार करके अद्भुत हस्त-लाघव का प्रदर्शन करते हुये बाणों को छोड़ना आरम्भ कर दिया जिससे राक्षसों के बाण कट-कट कर भूमि पर गिरने लगे। यह ज्ञात ही नहीं हो पाता था कि कब उन्होंने तरकस से बाण निकाला, कब प्रत्यंचा चढ़ाई और कब बाण छूटा। राम के बाणों के लगने से राक्षसगण निष्प्राण होकर भूमि में लेटने लगे। अल्पकाल में ही राक्षसों की सेना उसी भाँति छिन्न-भिन्न हो गई जैसे आँधी आने पर बादल छिन्न-भिन्न हो जाते हैं। पूरा युद्धस्थल राक्षसों के कटे हुये अंगों से पट गया।

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