ॐ साईं राम
रविजी जय साईं राम
इस फोरम की संरचना और कार्यप्रणाली में परिवर्तन करना चाहते है और इसको एक और भी सुंदर और प्रभावसाली रूप में विकसित करने की सोच के लिए धन्यबाद . कुछ सालाह देना अतिशयोक्ति ही होगी पर आपके अनुरोध का पालन करते हुये मै कुछ सुझाव रखने का प्रयत्न कर रहा हूँ .
1. विषयो के अनुसार ही विभागों का विभाजन किया जाये और उसका सही रूप से पालन किया जाये ,जैसे मन्त्र जाप में साईं प्रेमी बहुदा न जाके यदा -कदा अन्य विभागों में जा के मन्त्र जाप करते हैं
2. प्राथना में भी दो इसे विभाग बनाये जाये जहा एक में व्यक्ति जो वास्तविक रूप से किसी कारणवश पारिवारिक ,सामाजिक,व्यावासिक और नौकरीपेसे इत्यादि परेशानिओं से दुखित है ,आसहय सा महसूस कर रहा है और जिसको जीवन में कोई आशा की किरण नहीं नजर आ रही है उसके लिए प्राथना की जाये और दुसरे में जिनको अपनी इच्छाओं के प्राप्ति या मनोवांछित फल की इच्छा हो .
3. मैंने अक्सर ये देखा है की साधारणता कोई भी सवेदंसिल और प्रेणादायक या फिर अनछुए पहलू पर लिखे गये पोस्टो पर कोई टिपनीयां करने का कष्ट या उसको उचित ही नहीं समझते है ,अगर कभी -कभी करते भी है तो केवल मन्त्र जाप कर देते है या फिर एक दो प्रशंशा के शब्द बस .मेरे अनुसार विचारो के सकारात्मक और तर्क-सांगत आदान -प्रदान से से ही एक पुख्ता विचार का उदय होता है .
4. मंत्र जाप का अर्थ होता है मुख से शब्दों का उचारण करना और प्रतेक बार उसको लिखना . पर मुझे कभी-कभी एसा प्रतीत होता है की फोरम में कॉपी पेस्ट किया गया है . इसके लिए इस विभाग में छोटे -छोटे ब्लाक शब्दों की अधिकता के अनुसार बना दिए जाये जिससे प्रतेक बार साईं प्रेमिओ को उसमे ही लिखना पड़े .कॉपी पेस्ट करने का कोई अवसर ही न हो.
5. फोरम के कार्यकर्ता किसी भी तरह से कुंठित मनोभावना से ग्रषित न होते हुये एक सामान सबसे वेय्वाहर करें . कभी-कभी मैंने आक्रोश से भरे हुये शब्दों के तीर चलते देखे है. प्रतिस्पर्धा की भावना अपने बीच में न रखते हुए ,न ही स्कोर की चिंता करते हुए निर्भय होकर सही का मूल्यांकन कर अपने को पूर्ण समर्पण कर दे फोरम एवंग उसके अनुरूप कार्यो में .
6 फोरम मेरे विचार से वो स्थान है जहा कोई किसी को संतुष्ट या असंतुष्ट करने के लिए नहीं आता है सबको सबकुछ कहने का अधिकार है पर मर्यादा का पालन करते हुये .
7. किसी भी तरह की पोस्ट जो अंधविश्वासों को फेलाती है उसको उसी समय मिटा दिया जाये कारण हमारे समाज में गलत भ्रान्तिया जंगल की आग से भी तेज फेलती है .
8. साईं के वचनों और विचारो को कैसे नये तरीके से समाज में फेलाया जा सकता है उसपर विचार विमर्श अवश्य करें.
9. फोरम मे पद ग्रहण करने के पाश्च्यात पद की गरिमा ओर उसके महत्व का विशेष ध्यान रखना चाहिये . किसी को कुछ सलाह या शिक्षा देते वक्त उसकी मौलिकता ओर भावनाओं के महत्व का भी भली-भात अवलोकन करना उचित हैं . यथार्थ के साथ जुडे रहकर साई के वचनों ओर विचारो को कहने से मेरे जैसे मूढ़बुद्धि वाले भी उन्हे आसनी से आत्मसात करने मे सफल होंगे. साधारण और तथ्य विहीन बातो को कहने से धीरे -धीरे ये फोरम कही केवळ एक चेट रूम का रूप न बन जाये,इसका ध्यान अवश्य रखना होगा .
ये सम्पूर्णता मेरे अपने विचार है जो मैंने कुछ महीनो के अनुभव से कहे हैं . ये सच है की मैंने जो समझा और अनुभव किया वो सम्पूर्ण रूप से गलत भी हो सकते हैं . मेरी अल्पबुद्धि में जितना भी समझ में आया मेने बताने की कोशिस की हैं और भविष्य में कोई नए विचार आये तो जरूर आपको सूचित करूँगा .
जय जय साईं राम