ॐ साईं राम~~~
बासंती बसंत की~~~
सुनील अग्रवाल
बासंती बसंत की, अभितरेक असीम अभिराम।
कोकल पपीहा कर रहे, चारों ओर बखान॥
मदमस्त हर पुष्प है, ज्यों हो रस का खान।
सांवल भंवरा फैलाय रहे, चारोँ और गुंजान॥
तन सन्दल, मन सन्दल, और दुह्लन सा श्रंगार।
मनमोहक से रूप पर, गए हृदय को हार॥
कण-कण में विद्यमान है, नशा प्रेम उल्लास।
विरहनी भी द्वार खड़ी, ले पिया मिलन की आस॥
गज गमन, मदमस्त यौवन, अठलाया सा परिवेश।
अपलक सब निहार रहे, बसंत राज विशेष॥
कहीं रक्तिम कहीं पीतम, और हरितम को वेश।
आरती उतार रहे, ब्रह्मा, विष्णु, महेश॥
जय साईं राम~~~