श्री साईं नाथ की कृपा का एक और उदहारण मैं आप सभी के साथ बांटना चाहता हूँ | अपनी शादी से पहले बाबा से प्रार्थना की थी कि वह इस अवसर पर स्वयं पधार कर मुझ दास को कृतार्थ करें | घर पहुच कर मैं बहुत सारी जिम्मदारियों में व्यस्त हो गया और इस प्रार्थना की मुझको सुध भी नही रही |
अब आप सभी श्री साईंनाथ की कृपा का अवलोकन करें | ठीक मेरी शादी वाले दिन, दिनांक 24-02-08 को, मैं घर के अन्य कार्यो में काफ़ी व्यस्त था कि अचानक बाहर किसी ने गेट खटखटाया, मैं बाहर निकला तो क्या देखता हूँ कि गेट पर एक साधू खड़ा है | या तो इसको अतिव्यस्तता कह लें या मेरी भ्रमित बुद्धि कि उस समय भी मुझे अपनी की हुयी प्रार्थना की नही याद आई | मैने उस साधू से पूछा, " बाबा, क्या सेवा करें" | उत्तर मिला, "बेटा हम तो भोजन करने आये है" |
यह उत्तर सुनते ही मस्तिष्क में बहुत सारी बातें एक साथ आयीं | मुझको याद आई मेरी वह प्रार्थना जो मैने साईंनाथ से की थी | परन्तु उस साधू की वेशभूषा और चेहरा मोहरा साईंनाथ से मेल नही खाता था | इन विचारो के भंवर में ही मुझको याद आयीं 'साईं सद्चार्रित्र' में वर्णित उनकी कई लीलाएँ कि किस प्रकार साईंनाथ अपनी भक्तो के बुलावे पर कोई भी रूप रख कर पहुँच जाते है, चाहे वह श्री देव के यहाँ उद्यापन में शामिल होना हो, चाहे श्री हेमाद्पंत के यहाँ होली भोज पर शामिल होना हो या फ़िर श्री तर्खेड के यहाँ नैवैध्य ग्रहण करना हो |
इस विचार के मन आते ही मेरी तो खुशी का ठिकाना न रहा | श्री नाथ स्वयं चल कर आये, इससे बड़ी बात और क्या हो सकती थी | मन में अद्भुत प्रसन्नता थी, न मैं कुछ बोल रहा था न ही वह कुछ बोल रहे थे | तृप्ति से भोजन करने के बाद, उन्होने मुझको बुलाया और आशीर्वाद दिया | मैं जानता था कि वह कभी प्रकट नही करेंगे कि वह कौन है, वह तो सिर्फ़ अपने इस नादान बालक की मनोकामना को पूर्ण करने चले आये थे | इस कारण मैंने भी कोई अनर्गल प्रश्नोत्तर नही किया |
उनकी यही कृपा क्या कम थी कि मेरे द्वारा मेरी प्रार्थना का विस्मरण होने पर भी नाथ ने पधार कर मुझ मूर्ख को अपने आशीर्वाद से कृतार्थ किया | उस मालिक की कृपा का किस बुद्धि से आकलन करूँ, किस जबान से उनकी रहमत का वर्णन करूँ, यह नही समझ पाता बस यही जानता हूँ कि मेरे जीवन का हर क्षण उनकी दया से ही गुजर रहा है |
इस दुनिया में सभी संगी साथी मदद के लिये एक हाथ बढ़ा सकते है, पर मुझे तो मेरे साईं ने हजारो हाथो में संभल रखा है | ज्यादा कुछ कहने के लिये शब्द कम है मेरे पास....शायद कभी भी नही हो पायेंगे इतने शब्द कि उस मालिक कि रहमत का शुक्रिया अदा कर सकूं | मेरे नाथ की मुझ पर दया के लिये मैं यही कह रहा हूँ .......
"लिये आ रहा था मैं बैचैन दिल को,
कि तू मिल गया दर पर आने से पहले |
मुझ पर तो साईं का इतना करम है,
मुझ पर मेरे मालिक का इतना करम है,
भरी मेरी झोली फैलाने से पहले | "