Join Sai Baba Announcement List


DOWNLOAD SAMARPAN - Nov 2018





Author Topic: पशु योनी का बाबा के प्रति समर्पण  (Read 1999 times)

0 Members and 1 Guest are viewing this topic.

Offline Pratap Nr.Mishra

  • Member
  • Posts: 965
  • Blessings 4
  • राम भी तू रहीम भी तू तू ही ईशु नानक भी तू



ॐ साईं नाथाय नमः

सभी साईं प्रेमिओ से लम्बे अंतराल के बाद पुनः मिलने पर बेहद सुख की अनुभूति हो रही है. 17 october से 19 october तक  के शिर्डी रहने के अंतराल में बाबा की कुछ असीम  लिलायो से मुखातिब हुआ . एक  सुखद अनुभूति की प्राप्ति हुई और साथ ही साथ एक शिक्षा और प्रेरणा भी मिली.

बाबा की कृपा से मुझे इस बार उनके दर्शनाथ हतु VIP पास की सुविधा मिली जिसके हेतु मुझे और मेरे  परिवार को पहले से  जाके काकड़ आरती हेतु पंक्तिबद्ध नहीं होना पड़ा .  हमलोगों ने अती उत्साह में २.३०  प्रातः ही गेट नंबर २ में जाके  सबसे  पहले पंक्ति में खड़े हो गये  . करीब आधे घंटे के पश्च्यात ओर साईं प्रेमी आने लगे ओर पंक्ती मे खडे होने लागे. कुछ समय के पश्च्यात एक कुतिया वहा  आई और पंक्ति में खड़े व्यक्तिओ के पास जाने लगी . कुछ महिलाये  भयवश उसको भागने का प्रयास करने लगी . जो गार्ड्स २ नंबर गेट मे उस समय  वहा मौजूद थे उन्होंने कहा की इससे किसी को भी भयभीत होने की अव्सकता नहीं है क्योकि ये प्रतिदिन बाबा की चारो समय की आरती में जरूर जाती है और लाइन से ही एकदम समाधी मंदिर तक जाती है. आरती समाप्त होने के पश्च्यात ये वहा से बहार चली आती है. गार्ड की बातो को सुनने के पश्च्यात मुझे आश्चर्य जरूर हुआ था पर यकीन करना उतना ही मुस्किल था.  हमलोगों को गार्ड ने समय पर लाइन बना के मेन गेट से अन्दर आने को कहा और शानिदेवजी के मंदिर के सामने फिर से उसी तरह लाइन बना के खड़े रहने को कहा. मैंने इधर -उधर देखा तो अश्चार्चाकित हो गया क्योकि वही कुतियाँ भी वहां लाइन के साथ बैठी  हुई थी . हमलोगों को आरती के पूर्व जब बाबा के समक्ष जाने को मिला तब मुझे वही कुतियाँ बाबा की प्रतिमा के बाये और खड़ी हुई दिखाई दी . आरती के दोरान जब भी मेरी नजर वहा गाई मैने उससे बडी  तन्मयता से बाबा के सम्मुख पाया.   फिर आरती के समापन के पश्च्यात वो मुझे मंदिर के प्रांगन में कही भी नहीं दिखी.
इस सम्पूर्ण घटना ने मुझे सोचने में विवश कर दिया की बाबा की कैसी लीला है . वो कैसी -कैसी लीलाये करते है जिनको हम जैसे मुर्ख और अज्ञानी न कभी समझ पाए है न ही समझ सकते है पर हर लीला के पीछे कोई न कोई गूर्ण रहष्य छुपा ही होता है . मैंने इस घटना को समझने की बहुत कोसिस की और इस अल्प बुद्दी में जो आया मै आप लोगोको बताना चाहता हूँ.

कहते है की जो भी जीव किसी कार्य मे अपने पिछले जनम  में  लगातार और  बहुत ही तन्मयता से संगलंग रहता हैं  उसी कार्य की अनुभूति और लालसा उसकी मृतु के पश्च्यात  नई योनी प्राप्त करने के बाद भी रहती है . ये कुतियाँ भी पिछले जनम बाबा से बहुत ही  प्यार करती होगी  पर किसी कारण से उनका सनिग्ध नहीं मिल पाया होगा शायद किसी कर्मो कि वजह से. अपने पिछले  कर्मो की वजह से उसे अब इस योनी में आना पड़ा पर बाबा ने  उसको इस योनी में भी अपने दर्शन करने और श्रवन करने का मोका मिला . जो अतिप्त इच्छा पिछले  जनम मे नही मिल पाई थी वो इस जनम मे इस योनी मे भी बाबा कि कृपा से पूर्ण हो राही हैं.
एक अलग योनी मे होने के वावजूद भी उसका बाबा के प्रति जो समर्पण देखने को मिला वो अभूतपूर्व ओर आत्म चिंतन करने के योग्य हैं. हम मानव होने के वावजूद भी प्रखर बुद्धी ओर विवेक के मलिक होने के उपरांत भी अभी भी पथ से भटके हुये हैं. सही अर्थो मे बाबा के वचनों ओर विचारो को आत्म्साथ पूर्ण रुपसे नही करने मे सफल हुये हैं या असमर्थ ही हैं.
  
एक ओर बात मुझे समझ में आई की मै  अभी भी बाबा के वचनों ओर विचारो को पूर्णता अपने जीवन में नहीं ला पाया  हूँ . कहने को तो हमलोग  बड़ी-बड़ी ज्ञान की बाते करते हैं  पर केवल एक किताबी ज्ञान से अधिक वो कुछ नहीं है. ये थोथा  ज्ञान केवल किसी को प्रभावित करने या खुद को सबसे बड़ा बाबा का भक्त कहलाने या दिखलाने के लिए बस केवल है  जीवन को सही पथ में लाने के लिए  नहीं है.  इस ज्ञान से "मै'  का नाश नहीं बल्कि "मै" ओर भी बढ़ रहा है.  इस  ज्ञान का कोई मोल नहीं जबतक खुद की जिन्दगी में इसको  आत्मसात नहीं  किया या करने का प्रयास ही किया .  हम मानव योनी में रहते हुए भी बाबा को प्रति पूर्ण समर्पित नहीं है ओर  एक पशु योनी में होने के वावजूद भी कितना समर्पण है उस कुतियाँ का .

हमलोग सदा ही किसी न किसी तरह से किसी न किसी व्याधि से ग्रषित हो जाते है. छमा करियेगा  इस फोरम में भी मुझे  ग्रषित भावनाये  देखने को मिली.  साईं परिवार तो केवल कहने मात्र ही रह गया है पर एक पतिस्पर्धा ,आक्रोश  और "मै" की प्रबुलता है .  बाबा की बातो से कुछ हटके  अन्य बाते अब फोरम में जादा हावी हो गई है .  क्या केवल प्रेम -प्रशंग और प्रेम विछोव  ही फोरम की स्वर्प्रथम प्राथमिकता बन गई है.? क्या केवल भोतिक  वस्तुओ की प्राप्ति  की बाते करना ही सर्वोपरि हो गई है.

छमा चाहते हुए बड़े दुःख से मुझे कहना पड़ रहा है की मैं (हमलोग) फोरम के मूल्य उद्धेश से कही बहुत दूर चले जा रहे है. हमलोगों को फोरम की अव्सकताओ और उसकी उपयोगिता एवंग उसके उद्धेश को  पहले समझना पड़ेगा.  कैसे केवल बाबा की बातो को सही रूप से  समाज में फेला सके ? क्यो हमलोगो को इतने कष्टो का सामना करना पड रहा हैं ? क्या कारण हैं कि बाबा के सम्मुख हम केवळ भौतिकवादी वस्तुओ की ही इच्छा रखते हैं ओर न प्राप्तः होने पर बाबा से रुष्ट हो जाते हैं ? क्या कर्मो को सुधारने का कोई प्रयास करते हैं?

साईं राम




« Last Edit: November 26, 2011, 06:53:22 AM by Pratap Nr.Mishra »

 


Facebook Comments