ॐ श्री साईं नाथाय नमः
साईं सदैव हमारे साथ है .
मै हजारो कोस दूर एक अन्य देश में जीविकोपार्जन करने हेतू साईं की कृपा से आया हुआ हूँ . मै कभी भी अपना देश, परिवार एवंग संगे साथीयो को छोडके नहीं आना चाहता था पर साईं की मर्जी कुछ अलग ही थी . उन्होंने ऐसी परिस्थितियाँ पैदा कर दी मेरे सम्मुख कि मुझे अपने देश से मेरे अनुसार अच्छी नौकरी छोडके बाध्यता मूलक यहाँ आना पड़ा . मुझे नहीं मालूम साईं की इसके पीछे क्या लीला है पर मुझे ये दृढ विस्वास अवश्य है कि बाबा की हर लीला के पीछे कोई न कोई मकसद अवश्य अन्तर्निहित रहता है .
सबकुछ प्रारंभ में सही चल रहा था पर दुसरे साल से मुसीबते आने लगी . सहपाठियों और डिपार्टमेंटल राजनीती और षड्यंत्र का शिकार होने लगा. अनजान लोग और अनजान देश में बिलकुल खुद को असहाय सा महसूस कर रहा था . केवल साईं ही है जो मुझे समस्या से लड़ने की शक्ति प्रदान करते रहे और करते आ रहे हैं . हररोज नौकिरी जाने का भय मेरी मानसिक शांति को तोड़ देता था . मेरा परिवार मुझ पर सम्पूर्ण आश्रित है और अगर जीविकोपार्जन का साधन ही नहीं रहा तो सम्पूर्ण परिवार का क्या होगा ऐसे विचार स्वता ही मेरे मन में आकर मुझे लगातार एक अंधकारमय जीवन का भय दिखाते रहते थे .
मै इससे निजात पाने के लिए ध्यान एवंग साईं का स्मरण भी करते रहता हूँ पर माया की असीम शक्ति के आगे रोज घुटने टेक देता हूँ . ध्यान में बेठता हूँ तो कुछ क्षणों के पश्चात ही फिर भय घेर लेता है और ध्यान भंग हो जाता है . सत्य तो या है की बाबा के सम्मुख हतास होके केवल रोता ही रहता था और प्रश्नों की झड़ी लगा देता था कि बाबा
क्या मुझे ये पीड़ा ऐसे ही सहते रहनी पड़ेगी ?
क्या मै जिस ज्ञान की खोज में निकला हूँ वो अधुरा ही रहेगा ?
क्या अधात्मिक जगत एवंग आपके ज्ञान से मै वंचित ही रहूँगा ?
क्या मेरी कुछ जानने एवंग प्राप्त करने की जिज्ञासा यही समाप्त हो जाएगी ?
क्या मै अपने पारिवारिक कर्तव्यों का पालन करने में असफल रहूँगा ?
क्या परिवार को मेरी ही तरह पीड़ा का सामना करना होगा ?
ऐसे ही कई प्रश्नों की झड़ी बाबा के सम्मुख मैंने आज अर्थात गुरुवार अबसे कुछ समय पहले लगा दी थी और उसके पश्चात श्री साईं सत्चरित को आंखे बंधकर खोला एवंग 23 वां अध्धाय खुलकर आया . मैंने पढना शुरू किया और जब समाप्ति तक पहुंचा तो जैसे मेरे सब प्रश्नों का यथोचित उत्तर मुझे बाबा ने दे दिया. मेरे आँखों से स्वता ही आंसू प्रवावित होने लगे और मन सम्पूर्ण शांति को प्राप्त हुआ . जिस भय से मै कुछ क्षण पहले व्यकुल हो रहा था वो एकदम गायब हो गया है . एक असीम उत्साह और आत्मबल मिला है . जिस पीड़ा से मै कई दिनों से पीड़ित था आज जैसे पता नहीं कहाँ बाबा की कृपा से गायब हो गई है.
मै साईं के संकेतो का वर्णन नहीं कर रहा हूँ पर साईं प्रेमियों से अवश्य अनुरोध है कि आप स्वयम इस अध्धाय का पठन करिए और बाबा की लीला का आनंद उठाइए. मेरे उदेश्य केवल इतना ही है की मेरे तरह ही अन्य साईं प्रेमी भी असहनिये पीड़ा को भोग रहे होंगे उनको श्री साईं चरणों में ओर भी दृढ़ता और आत्मबल मिलेगा .
ॐ साईं राम