जय सांई राम।।।
नहीं बसता मैं किसी मन्दिर या मस्जिद में,
न ही रहता हूं किसी गिरिजाघर या गुरुद्वारे में,
न ही बसता हूं किसी पूजा घर में|
यह तो है केवल अपना दिल बहलाना,
मैं तो हूं तुम्हारे आशियाना में |
मैं नही पाया जाता पुरी, रामेश्वर में,
न ही मक्का, मदीना में,
जेरूसलम या कोई अन्य पवित्र स्थल भी नही है मेरा ठिकाने|
यह सब तो है लोगों के अफसाने,
तरीके दिल बहलाने के,
क्योंकि मैं तो वास करता हूं, तुम्हारे मन मानस में|
मुझे, न बता सकते हैं कोई महात्मा, योगी,
न ही मेरी व्याख्या कर सके फकीर, पादरी|
यह तो सब हैं लोगों के फंसाने,
तरिके खुद को फुसलाने के|
मैं नही सीमित गीता या रामायण में,
न ही हूं बंधा बाईबल या कोरान में|
यह तो थे अपने समय के उचित आचरण,
मैं तो हूं ऊपर इनसे|
मैं नहीं बंधता समय से,
मैं हूं स्वयं समय,
क्या करूंगा, खुद से लड़ कर|
जो परम्परा समय के साथ नही बदलती,
वह कहलाती रूढ़िवादिता |
मैं नहीं हूं, रूढ़िवादिता,
न ही, जकड़ा जा सकता किसी परम्परा से|
मैं नही बन्धता इनसे,
मैं तो हूं उन्मुक्त, इन बन्धनो से परे|
मैं न तो हूं राम, न ही कृष्ण,
न ही अल्लाह, न ही पैग्मबर,
न ही हूं मैं यीशू मसीह,
या पूजा किये जाने वाले कोई और नाम|
यह तो हैं तरीके, लोगों के सम्झाने के,
मैं तो ऊपर हूं इन सबके|
नही हूं मैं दकियानूसी,
न ही हूं, अन्धी आधुनिकता|
मैं तो हूं केवल एक आचरण|
मैं नही वह आचरण, जो तोड़े दूसरों के पूजा स्थल|
मैं तो हूं वह आचरण,
जो जवानी के मदहोश दिवानो से, रात में अकेली अबला चाहे;
अभिलाशे दंगे में फंसा इन्सान, आवेश में अधें दंगाइयों से|
मैं नहीं धरोवर केवल हिन्दुवों की,
न ही केवल मुस्लिम सिख ईसाई की|
मैं तो हूं वह आचरण,
जो पाया जाये, सब मज़हब में|
मैं नही हूं विचारों का टकराव|
मैं तो हूं दूसरे के विचारों का समझाव|
मैं करता विचारों का आदर, समझता दूसरों का पक्ष|
मैं तो हूं अलग अलग विचारों का सगंम,
जो लाता जीवन में कभी खुशी कभी गम|
मैं हूं वह आचरण—
जो आप अपने लियें चाहें, दूसरे से;
या आप लें, अपने ईमान से|
जो मेरे मर्म को जाने,
नहीं जरूरत उसे किसी पूजा स्थल की|
न ही किसी इष्ट देव की,
शान्ति रहे हमेशा, उससे चिपकी|
जो चले मेरे रस्ते
न भटके वह,
किसी महात्मा, फकीर के बस्ते|
क्योंकि मैं हूं हमेशा संग उसके|
जो मेरे महत्व को समझे
करे कर्म का वह सेवन,
कर्म ही पूजा, कर्म ही उसका जीवन|
उसका मन, मानस चले संग|
आओ ढूढ़ो, पहचानो मुझको,
मैं हूं खड़ा तुम्हारे अन्दर|
मैं तो हूं केवल,
जी हां, केवल
अन्त:मन से लिया गया विवेकशील आचरण|
ॐ सांई राम।।।