प्रेम ही ईश्वर है,यह ही नशवर है,यह ही नर को नारायण से जोड़ता है
प्रेम ही बाबा का सरूप है,बाबा प्रेम की ही परिभाषा है,वो समाज में प्रेम ही तोह बाटने आए थे,उनका अहम् तत्पर्ये समाज में फेले भेद भाव को हटाकर प्रेम की ज्योत परजालित करना था,वेह चारो और प्यार बाटते चाहे हिंदू हो या मुस्लमान,सिख या ईसाई,सबको समान नज़र से देखते,सभी के सुख दुःख बाटते,अगर कोई दुखी होता तोह बाबा के समक्ष आते ही बाबा उसके दुःख हर लेते और चारो और प्रेम का वातावरण कर देते ,बाबा का यह भी कहना था कि
जितना हम प्रेम को समाज में फेलायेगे ,उतना ही अपने निकट हम मालिक को पाएंगे
जय साई राम