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Author Topic: GURU KRIPA .............  (Read 96610 times)

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  • बाबा मुझे अपने ह्र्दय से लगा लो, अपने पास बुला लो।
GURU KRIPA .............
« on: February 20, 2013, 01:08:55 AM »
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  • OM SAI RAM!!!

    Mathematics of spirituality is that 2 + 1 = 0.
    Did you get it?
    Think about it! When the body and mind, these two merge with the One spirit,
    then nothing remains to be known anymore.
    That is what it is!

    Sri Sri Ravi Shankar
    « Last Edit: February 20, 2013, 01:18:18 AM by ShAivI »

    JAI SAI RAM !!!

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    • बाबा मुझे अपने ह्र्दय से लगा लो, अपने पास बुला लो।
    Re: GURU KRIPA .............
    « Reply #1 on: February 20, 2013, 01:17:59 AM »
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  • ॐ साईं राम !!!

    जिन्हें मनुष्य जीवन का महत्व पता नहीं है
    वे लोग देह के मान, सुख और सुविधा में ही अपनी अक्ल,
    अपना धन और सर्वस्व लुटा देते हैं.


    परम पूज्य बापूजी

    JAI SAI RAM !!!

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    • बाबा मुझे अपने ह्र्दय से लगा लो, अपने पास बुला लो।
    Re: GURU KRIPA .............
    « Reply #2 on: February 21, 2013, 03:20:22 AM »
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  • OM SAI RAM!!!

    Life has five dimensions of five senses. There is one more dimension,
    and that is feeling - feeling the Presence. Light cannot be heard,
    it has to be seen through the eyes. Sound cannot be seen, it has
    to be heard by the ears. Likewise, Presence has to be felt by the
    heart. Human life is enriched only when we can live this sixth sense
    of existence!

    जीवन में पांच इन्द्रियों के पांच आयाम हैं। एक और आयाम है - सान्निध्य महसूस करने का।
    प्रकाश सुना नहीं जा सकता,वह आँखों से देखा जाता है। वाणी देखी नहीं जाती, कानों से सुनी
    जाती है। उसी तरह, सान्निध्य को दिल में महसूस किया जाता है। मानवीय जीवन तभी निखरता
    है जब हम यह छठी इन्द्रिय जीवन में उतारते हैं


    Sri Sri Ravi Shankar

    JAI SAI RAM !!!

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    • बाबा मुझे अपने ह्र्दय से लगा लो, अपने पास बुला लो।
    Re: GURU KRIPA .............
    « Reply #3 on: February 21, 2013, 03:23:44 AM »
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  • ॐ साईं राम !!!

    आपके पास जो धन, सत्ता और योग्यता है, उसके साथ यदि इश्वर प्राप्ति का उद्धेश्य
     नहीं है तो वह किस प्रकार धोखा दे जाए कोई पता नहीं !


    परम पूज्य बापूजी

    JAI SAI RAM !!!

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    • बाबा मुझे अपने ह्र्दय से लगा लो, अपने पास बुला लो।
    Re: GURU KRIPA .............
    « Reply #4 on: February 22, 2013, 01:26:38 AM »
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  • OM SAI RAM!!!

    Make your smile cheaper and anger expensive.
    Have a sense of humour.
    You are endowed with certain naughtiness as a child.
    Keep it alive.
    Humour will grease all tough situations.
    One who has humour can sail through any conflict.
     Humour is the buffer that saves you from humiliation.
    Humour is not just words;
    it is the lightness of your being.


    Sri Sri Ravi Shankar

    JAI SAI RAM !!!

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    • बाबा मुझे अपने ह्र्दय से लगा लो, अपने पास बुला लो।
    Re: GURU KRIPA .............
    « Reply #5 on: February 22, 2013, 01:28:21 AM »
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  • ॐ साईं राम !!!

    गुरु की सीख माने वोह सिष्य है.
    अपने मन में जो आता है,
    वह तो अज्ञानी, पामर, कुत्ता, गधा भी युगों से करता आया है.
    आप तो गुरुमुख बनिए, शिष्य बनिए.


    परम पूज्य बापूजी

    JAI SAI RAM !!!

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    • बाबा मुझे अपने ह्र्दय से लगा लो, अपने पास बुला लो।
    Re: GURU KRIPA .............
    « Reply #6 on: February 26, 2013, 07:24:03 AM »
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  • OM SAI RAM!!!

    What is Enlightenment? Living from a depth of life,
    not getting stressed in any situation, to be able to influence
    circumstances, rather than get influenced by them. If you could
    smile from the depth of your heart, somewhere deep inside of you...
    Because our very nature is enlightenment, that is why human and
    divine are not two things. Stress is the outermost cover, the plastic
    around the apple. Human is the outer skin and divine is the pulp inside.


    मुक्ति क्या है? जीवन को एक गहराई से जीना, किसी भी परिस्थिति में तनावपूर्ण न होना, परिस्थितियों
    से प्रभावित होने की बजाय उन्हें प्रभावित करना। यदि तुम दिल की गहराईओं से मुस्कुरा सको, कहीं
    भीतर से... मुक्ति तुम्हारा स्वभाव है। मनुष्यता और दिव्यता दो नहीं हैं। तनाव सबसे बाहर का
    आवरण है, सेब पर लगे प्लास्टिक की तरह। मनुष्यता उसकी बाहरी त्वचा है और दिव्यता उसके
    भीतर का गूदा है।


    Sri Sri Ravi Shankar

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    Re: GURU KRIPA .............
    « Reply #7 on: February 26, 2013, 07:27:57 AM »
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  • ॐ साईं राम !!!

    दो औषधियों का मेल आयुर्वेद का योग है!
    दो अंको का मेल गणित का योग है!
    चित्तवृत्ति का निरोध यह पातंजलि का योग है
    परन्तु सब परिस्तिथियों में सम रहना भगवान् श्री कृष्णा की "गीता" का  समत्व योग है !


    परम पूज्य बापूजी
    « Last Edit: February 26, 2013, 07:35:22 AM by ShAivI »

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    Re: GURU KRIPA .............
    « Reply #8 on: February 27, 2013, 04:51:41 AM »
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  • OM SAI RAM!!!

    When you want to do something, look at your strength.
    weakness is that you start looking at others' strengths!
    When you are running, you can only look at the track below,
    not at who's next to you. Like a horse with blinders,
    you just look at your path and let anybody do whatever he/she wants..

    जब तुम्हें कुछ करना है तो अपने बल पर ध्यान दो।
    तुम्हारी कमजोरी यह है कि तुम दूसरों के बल पर ध्यान देते हो!
     जब तुम दौड़ में भागते हो तो नीचे ट्रैक पर देखोगे न कि साथ वाले को।
    घोड़े की तरह जिसकी आँखों पर पट्टी लगी हो, केवल अपना मार्ग देखो
    और बाकी सब को जो भी वे करना चाहें, करने दो।


    Sri Sri Ravi Shankar

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    Re: GURU KRIPA .............
    « Reply #9 on: February 27, 2013, 04:52:48 AM »
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  • ॐ साईं राम !!!

    मन को फूलों की तरह सुन्दर रखो ताकि भगवान् की पूजा में लग सके !!!

    परम पूज्य बापूजी

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    Re: GURU KRIPA .............
    « Reply #10 on: February 28, 2013, 01:16:35 AM »
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  • OM SAI RAM!!!

    If you are faced with someone who knows more than you,
    be like a child and keep your ears and eyes open for learning.
    If you are faced with someone who knows less than you, be humble
    and strive to make them as good as or better than you.
    Communicate with a person of your age group like you are his/her
    best friend. When you are centered, you become a powerful communicator.

    यदि तुम किसी ऐसे व्यक्ति से मिलो जो तुमसे अधिक जानता हो, तो एक बालक की तरह रहो
    और अपने आँख और कान सीखने के लिए खुले रखो। यदि किसी ऐसे व्यक्ति से मिलो जो
    तुमसे कम जानता हो, तो विनम्र रहो और उन्हें अपने जैसा या बेहतर करने का प्रयत्न करो।
    अपनी आयु के व्यक्ति से ऐसा व्यवहार करो जैसे तुम उसके सबसे घनिष्ठ मित्र हो। जब तुम
    अपने केंद्र में स्थित हो तो तुम एक शक्तिशाली संचारक बन जाते हो।


    Sri Sri Ravi Shankar

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    Re: GURU KRIPA .............
    « Reply #11 on: February 28, 2013, 01:17:51 AM »
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  • ॐ साईं राम !!!

    जो अपने साधना पथ में इमानदारी व सच्चे ह्रदय  से प्रयत्न करता है और
    इश्वर साक्षात्कार के लिए तड़पता है, उस योग्य शिष्य पर ही गुरु की कृपा उतरती है!


    परम पूज्य बापूजी

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    Re: GURU KRIPA .............
    « Reply #12 on: March 01, 2013, 01:16:44 AM »
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  • ॐ साईं राम !!!

    भगवान् में अपनापन उनकी प्राप्ती का सबसे सुगम और श्रेष्ठ साधन है !


    परम पूज्य बापूजी

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    Re: GURU KRIPA .............
    « Reply #13 on: March 01, 2013, 01:19:50 AM »
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  • OM SAI RAM!!!


    Sorrow simply means that viveka (discrimination) is overshadowed.
    Viveka means knowing that everything is changing.
    Your body, your emotions, the people around you and the
    world - everything is changing. Time and again you have to
    awaken to this reality. You are often fearful of change. You know
    there is a need for change to improve your life, but you feel secure
    in the old pattern. So, use your intelligence and have the courage
    to implement changes whenever it is necessary.

    दुखी होने का केवल इतना अर्थ है कि विवेक ढक गया है। विवेक का अर्थ है यह जानना
    कि सब परिवर्तनशील है। तुम्हारा शरीर, तुम्हारी भावनाएं, आस पास के लोग, यह
    पूरा जगत - सब बदल रहा है। तुम्हें पुनः पुनः इस सत्य के प्रति जागृत होना है।
    प्रायः तुम परिवर्तन से भयभीत होते हो। जीवन सुधारने के लिए परिवर्तन की
    आवश्यकता होती है, पर तुम अपनी पुरानी प्रवृत्ति में सुरक्षित महसूस करते हो।
    इसलिए अपनी बुद्धि का उपयोग करो और जब भी आवश्यकता हो,
    तब परिवर्तन लाने का साहस रखो।


    Sri Sri Ravi Shankar

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    Re: GURU KRIPA .............
    « Reply #14 on: March 02, 2013, 03:00:33 AM »
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  • OM SAI RAM!!!

    Know that humiliation does not weaken you, it strengthens you.
    The more egoistic you are, the more humiliation you feel.
    When you are childlike and have a greater sense of kinship,
    you do not feel humiliated. When you are steeped in love
    with the Existence, with the Divine, nothing whatsoever
    can humiliate you.

    अपमान तुम्हें निर्बल नहीं बनाता, तुम्हें प्रबल बनाता है। तुम जितने अहंकारी हो,
    उतना अपमान महसूस करोगे। जब तुम बच्चों की तरह सहज रहते हो और
    आत्मीयता रखते हो, तब अपमान नहीं महसूस करते। जब तुम इस सृष्टि के,
    ईश्वर के प्रेम में ओत प्रोत हो, तुम्हारा कोई अपमान नहीं हो सकता।


    Sri Sri Ravi Shankar

    JAI SAI RAM !!!

     


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